भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा भी विचित्र स्वभाव / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:12, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा भी विचित्र स्वभाव!

लक्ष्य से अनजान मैं हूँ,
लस्त मन-तन-प्राण मैं हूँ,
व्यस्त चलने में मगर हर वक्त मेरे पाँव!
मेरा भी विचित्र स्वभाव!

कुछ नहीं मेरा रहेगा,
जो सदा सबसे कहेगा,
वह चलेगा लाद इतना भाव और अभाव!
मेरा भी विचित्र स्वभाव!

उर व्यथा से आँख रोती,
सूज उठती, लाल होती,
किन्तु खुलकर गीत गाते हैं हृदय के घाव!
मेरा भी विचित्र स्वभाव!