भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन का विष बोल उठा है / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन का विष बोल उठा है!

मूँद जिसे रक्खा मधुघट से,
मधुबाला के श्यामल पट से,
आज विकल, विह्वल सपनों के अंचल को वह खोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!

बाहर का श्रृंगार हटाकर
रत्नाभूषण, रंजित अंबर,
तन में जहाँ-जहाँ पीड़ा थी कवि का हाथ टटोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!

जीवन का कटु सत्य कहाँ है,
यहाँ नहीं तो और कहाँ है?
और सबूत यही है इससे कवि का मानस ड़ोल उठा है!
जीवन का विष बोल उठा है!