भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब खँड़हर भी टूट रहा है / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब खँड़हर भी टूट रहा है!

गायन से गुंजित दीवारें,
दिखलाती हैं दीर्घ दरारें,
जिनसे करुण, कर्णकटु, कर्कश, भयकारी स्वर फूट रहा है!
अब खँड़हर भी टूट रहा है!

बीते युग की कौन निशानी,
शेष रही थी आज मिटानी?
किंतु काल की इच्छा ही तो, लुटे हुए को लूट रहा है!
अब खँड़हर भी टूट रहा है!

महानाश में महासृजन है,
महामरण में ही जीवन है,
था विश्वास कभी मेरा भी, किंतु आज तो छूट रहा है!
अब खँड़हर भी टूट रहा है!