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कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा / हरिवंशराय बच्चन

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कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा!

जिन चीजों की चाह मुझे थी,
जिनकी कुछ परवाह मुझे थी,
दीं न समय से तूने, असमय क्या ले उन्हें करूँगा!
कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा!

मैंने बाँहों का बल जाना,
मैंने अपना हक पहचाना,
जो कुछ भी बनना है मुझको अपने आप बनूँगा!
कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा!

व्यर्थ मुझे है अब समझाना,
व्यर्थ मुझे है अब फुसलाना,
अंतिम बार कहे देता हूँ, रूठा हूँ, न मनूँगा!
कुछ भी आज नहीं मैं लूँगा!