भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको प्यार न करो ड़रो / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)
मुझको प्यार न करो, ड़रो!
जो मैं था अब रहा कहाँ हूँ,
प्रेत बना निज घूम रहा हूँ,
बाहर से ही देख न आँखों पर विश्वास करो!
मुझको प्यार न करो, ड़रो!
मुर्दे साथ चुके सो मेरे,
देकर जड़ बाहों के फेरे,
अपने बाहु पाश में मुझको सोच-विचार भरो!
मुझको प्यार न करो ड़रो!
जीवन के सुख-सपने लेकर,
तुम आओगी मेरे पथ पर,
है मालूम कहूँगा क्या मैं, मेरे साथ मरो
मुझको प्यार न करो ड़रो!