भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम गये झकझोर / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 29 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)
तुम गये झकझोर!
कर उठे तरु-पत्र मरमर,
कर उठा कांतार हरहर,
हिल उठा गिरि, गिरि शिलाएँ कर उठीं रव घोर!
तुम गये झकझोर!
डगमगाई भूमि पथ पर,
फट गई छाती दरककर,
शब्द कर्कश छा गया इस छोर से उस छोर!
तुम गये झकझोर!
हिल उठा कवि का हृदय भी,
सामने आई प्रलय भी,
किंतु उसके कंठ में था गीतमय कलरोर!
तुम गये झकझोर!