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आस्था-5 / राजीव रंजन प्रसाद
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तुमने
बहते हुए पानी में
मेरा ही तो नाम लिखा था
और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं
आस्थायें अबूझे शब्द हो गई हैं
मिट नहीं सकती लेकिन..