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कभी मन अपने को भी जाँच / हरिवंशराय बच्चन
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कभी, मन, अपने को भी जाँच।
नियति पुस्तिका के पन्नों पर,
मूँद न आँखें, भूल दिखाकर,
लिखा हाथ से अपने तूने जो उसको भी बाँच।
कभी, मन, अपने को भी जाँच।
सोने का संसार दिखाकर,
दिया नियति ने कंकड़-पत्थर,
सही, सँजोया कंचन कहकर तूने कितना काँच?
कभी, मन, अपने को भी जाँच।
जगा नियति ने भीषण ज्वाला,
तुझको उसके भीतर ड़ाला,
ठीक, छिपी थी तेरे दिल के अंदर कितनी आँच?
कभी, मन, अपने को भी जाँच।