Last modified on 2 अक्टूबर 2009, at 02:18

कभी मन अपने को भी जाँच / हरिवंशराय बच्चन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:18, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी, मन, अपने को भी जाँच।

नियति पुस्तिका के पन्नों पर,
मूँद न आँखें, भूल दिखाकर,
लिखा हाथ से अपने तूने जो उसको भी बाँच।
कभी, मन, अपने को भी जाँच।

सोने का संसार दिखाकर,
दिया नियति ने कंकड़-पत्थर,
सही, सँजोया कंचन कहकर तूने कितना काँच?
कभी, मन, अपने को भी जाँच।

जगा नियति ने भीषण ज्वाला,
तुझको उसके भीतर ड़ाला,
ठीक, छिपी थी तेरे दिल के अंदर कितनी आँच?
कभी, मन, अपने को भी जाँच।