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अब तो दुख के दिवस हमारे / हरिवंशराय बच्चन
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अब तो दुख दें दिवस हमारे!
मेरा भार स्वयं ले करके,
मेरी नाव स्वयं खे करके,
दूर मुझे रखते जो श्रम से, वे तो दूर सिधारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!
रह न गये जो हाथ बटाते,
साथ खेवाकर पार लगाते,
कुछ न सही तो साहस देते होकर खड़े किनारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!
डूब रही है नौका मेरी,
बंद जगत हैं आँखें तेरी,
मेरी संकट की घड़ियों के साखी नभ के तारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!