भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब तो दुख के दिवस हमारे / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:49, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब तो दुख दें दिवस हमारे!

मेरा भार स्वयं ले करके,
मेरी नाव स्वयं खे करके,
दूर मुझे रखते जो श्रम से, वे तो दूर सिधारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!

रह न गये जो हाथ बटाते,
साथ खेवाकर पार लगाते,
कुछ न सही तो साहस देते होकर खड़े किनारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!

डूब रही है नौका मेरी,
बंद जगत हैं आँखें तेरी,
मेरी संकट की घड़ियों के साखी नभ के तारे!
अब तो दुख दें दिवस हमारे!