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हृदय सोच यह बात भर गया / हरिवंशराय बच्चन
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हृदय सोच यह बात भर गया!
उर में चुभने वाली पीड़ा,
गीत-गंध में कितना अंतर,
कवि की आहों में था जादू काँटा बनकर फूल झर गया।
हृदय सोच यह बात भर गया!
यदि अपने दुख में चिल्लाता
गगन काँपता, धरती फटती,
एक गीत से कंठ रूँधकर मानव सब कुछ सहन कर गया।
हृदय सोच यह बात भर गया!
कुछ गीतों को लिख सकते हैं,
गा सकते हैं कुछ गीतों को,
दोनों से था वंचित जो वह जिया किस तरह और मर गया।
हृदय सोच यह बात भर गया!