(१)
तू कैसे रचना करता है?
तू कैसी रचना करता है?
अपने आँसू की बूँदों में--
अविरल आँसू की बूँदों में,
विह्वल आँसू की बूँदों में,
कोमल आँसू की बूँदों में,
निर्बल आँसू की बूँदों में--
लेखनी डुबाकर बारबार,
लिख छोटे-छोटे गीतों को
गाता है अपना गला फाड़,
करता इनका जग में प्रचार।
(२)
इनको ले बैठ अकेले में
तुझ-से बहुतेरे दुखी-दीन
खुद पढ़ते हैं, खुद सुनते हैं,
तुझसे हमदर्दी दिखलाते,
अपनी पीड़ा को दुलराते,
कहते हैं, ’जीवन है मलीन,
यदि बचने का कोई उपाय
तो वह केवल है एक मरण।’
(३)