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निकल आये इधर जनाब कहाँ / बशीर बद्र
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निकल आये इधर जनाब कहाँ
रात के वक़्त आफ़ताब कहाँ
सब खिले हैं किसी के आरिज़ पर
इस बरस बाग़ में गुलाब कहाँ
मेरे होंठों पे तेरी ख़ुश्बू है
छू सकेगी इन्हें शराब कहाँ
मेरी आँखें किसी के आँसू हैं
वर्ना इन पत्थरों में आब कहाँ