Last modified on 4 अक्टूबर 2009, at 14:04

निकल आये इधर जनाब कहाँ / बशीर बद्र

Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निकल आये इधर जनाब कहाँ
रात के वक़्त आफ़ताब कहाँ

सब खिले हैं किसी के आरिज़ पर
इस बरस बाग़ में गुलाब कहाँ

मेरे होंठों पे तेरी ख़ुश्बू है
छू सकेगी इन्हें शराब कहाँ

मेरी आँखें किसी के आँसू हैं
वर्ना इन पत्थरों में आब कहाँ