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संगतराश / गिरिराज किराडू
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शायद एक वही सब कुछ पहले से जानता था सब कुछ पहले से तराश रखा था उसने
वह हमेशा वीराने में रहता था और एक दिन अचानक उसके वीराने में जो बहार चली आएगी
उसकी आँखें ग़ज़ब की होंगी जब दूसरे ख़्वाब देख रहे होंगे वह बस अपनी आँखें देखेगी
वो हकीकत ही क्या जिसे मुजुस्तमा न बनाया जा सके वह बहार से कहेगा और बेतहाशा हँसने लगेगा