भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवेदन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:17, 10 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अनामिका / सू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(गीत)

फिर सवाँर सितार लो!
बाँध कर फिर ठाट, अपने
अंक पर झंकार दो!
शब्द के कलि-कल खुलें,
गति-पवन-भर काँप थर-थर
मीड़-भ्रमरावलि ढुलें,
गीत-परिमल बहे निर्मल,
फिर बहार बहार हो!
स्वप्न ज्यों सज जाय
यह तरी, यह सरित, यह तट,
यह गगन, समुदाय।
कमल-वलयित-सरल-दृग-जल
हार का उपहार हो!