भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महज़ संयोग / सैयद शहरोज़ क़मर

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 12 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सैयद शहरोज़ क़मर |संग्रह= उर्फ़ इतिहास / सैयद शह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह एक महज़ संयोग था
कि उस वक़्त तुम और तुम्हारे चिलचिलाते
बदन को देखा
लहलहाती दुपहरी में
चुक्कू-मुक्कू तुम्हारा बच्चों के संग
बाटी खेलना और खेलते रहना

मेरी अनदेखी
तुम्हारी मुस्कान ने भंग की नीरवता
अब मैं भीतर-भीतर प्रेम के दावानल में
झुलसता महसूस कर रहा हूँ

तुम्हारे प्रति ये मेरा
अनुराग या आग्रह
बेहतर होता कि काश
मैं किसी चट्टान या दरख़्त में हो जाता
तब्दील तो यह प्यार की टीस
महसूस तो न होती