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अज्ञात स्पर्श / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
शरद के
एकांत शुभ्र प्रभात में
हरसिंगार के
सहस्रों झरते फूल
उस आनंद सौन्दर्य का
आभास न दे सके
जो
तुम्हारे अज्ञात स्पर्श से
असंख्य स्वर्गिक अनुभूतियों में
मेरे भीतर
बरस पड़ता है !