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आते कैसे सूने पल / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल ?
जब लगता सब विश्रृंखल;
तृण, तरु, पृथ्वी, नभमंडल !
खो देती उर की वीणा
झंकार मधुर जीवन की,
बस साँसों के तारों में
सोती स्मृति सूनेपन की !
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन !
आत्मा है सरिता के भी
जिससे सरिता है सरिता;
जल-जल है, लहर-लहर रे,
गति-गति सृति-सृति चिर भरिता !
क्या यह जीवन ? सागर में
जल भार मुखर भर देना !
कुसुमित पुलिनों की कीड़ा-
ब्रीड़ा से तनिक ने लेना !
सागर संगम में है सुख,
जीवन की गति में भी लय,
मेरे क्षण-क्षण के लघु कण
जीवन लय से हों मधुमय