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समझा जीवन की विजया हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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समझा जीवन की विजया हो।
रथी दोषरत को दलने को
विरथ व्रती पर सती दया हो।
पता न फिर भी मिला तुम्हारा,
खोज-खोजकर मानव हारा;
फिर भी तुम्हीं एक ध्रुवतारा,
नैश पथिक की पिक अभया हो।
ऋतुओं के आवर्त-विवर्तों,
लिये चलीं जो समतल-गर्तों,
खुलती हुई मर्त्य के पर्तों
कला सफल तुम विमलतया हो।