भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:56, 16 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)
पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा|
भुक्ति-मुक्ति में गान तुम्हारा।
आंख-आंख पर भाव बदलकर,
चमके हो रंग-छवि के पलभर,
पुनः खोलकर हृदय-कमल कर,
गन्ध बने, अभिधान तुम्हारा।
विपुल-पुलक-व्याकुल अलि के दल
मानव मधु के लिए समुत्कल
उठे ज्योति के पंख खमण्डल,
अन्तस्तल अभियान तुम्हारा।
बैठे हृदयासन स्वतनत्र-मन,
किया समाहित रूप-विचिन्तन,
नृम्न मृण्मरण बचे विचक्षण,
ज्ञान-ज्ञान शुभ स्थान तुम्हारा।