भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लगी लगन, जगे नयन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 16 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगी लगन, जगे नयन;
हटे दोष, छुटा अयन;

दुर्मिल जो कुछ ऊर्मिल
मिल-मिलकर हुआ अखिल,
घुल-घुलकर कुल पंकिल
घुला एक रस अशयन।

छुटे सभी विषम बन्ध
विषमय वासना-अन्ध;
संशय की गई गन्ध;
शय-निश्चय किया चयन।

कामना विलीन हुई,--
सभी अर्थ क्षीण हुई,
उद्धत शिति दीन हुई,
दिखा नवल विश्व-वयन।