Last modified on 17 अक्टूबर 2009, at 12:20

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो / तुलसीदास

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 17 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }}<poem>कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो। श्री र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो।
श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तैं, संत सुभाव गहौंगो।
जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित निरत निरंतर, मन क्रम बचन नेम निबहौंगो।
परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौंगो।
बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौंगो।
परिहरि देहजनित चिंता दुख सुख समबुद्धि सहौंगो।
तुलसिदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौंगो।