भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरल तार नवल गान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 17 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)
सरल तार, नवल गान,
नव-नव स्वर के वितान।
जैसे नव ॠतु, नव कलि,
आकुल नव-नव अंजलि,
गुंजित-अलि-कुसुमावलि,
नव-नव-मधु-गन्ध-पान।
नव रस के कलश उठे,
जैसे फल के, असु के,—
नव यौवन के बसु के
नव जीवन के प्रदान।
उठे उत्स, उत्सुक मन,
देखे वह मुक्त गगन,
मुक्त धरा, मुक्तानन,
मिला दे अदिव्य प्राण।