Last modified on 18 अक्टूबर 2009, at 17:44

नव जीवन की बीन बजाई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नव जीवन की बीन बजाई।
प्रात रागिनी क्षीण बजाई।

घर-घर नये-नये मुख, नव कर,
भरकर नये-नये गुंजित स्वर,
नर को किया नरोत्तम का वर,
मीड़ अनीड़ नवीन बजाई।

वातायन-वातायन के मुख
खोली कला विलोकन-उत्सुक,
लोक-लोक आलोक, दूर दुख,
आगम-रीति प्रवीण बजाई।