Last modified on 19 अक्टूबर 2009, at 07:53

परकाजहि देह को धारि फिरौ / घनानंद

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:53, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }}<poem>परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ।
निधि-नीर सुधा के समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।
घनआनँद जीवन दायक हौ कछू मेरियौ पीर हियें परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मो अँसुवानहिं लै बरसौ॥