मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सकी
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सकी
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी