तुम आये, कनकाचल छाये,
ऐ नव-नव किसलय फैलाये।
शतशत वल्लरियाँ नत-मस्तक,
झुककर पुष्पाधर मुसकाये।
परिणय अगणन यौवन-उपवन,
संकुल फल के गुंजन भाये;
तुम आये, कनकाचल छाये,
ऐ नव-नव किसलय फैलाये।
शतशत वल्लरियाँ नत-मस्तक,
झुककर पुष्पाधर मुसकाये।
परिणय अगणन यौवन-उपवन,
संकुल फल के गुंजन भाये;