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घन आये घनश्याम न आये। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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घन आये घनश्याम न आये।
जल बरसे आँसू दृग छाये।

पड़े हिंडोले, धड़का आया,
बढ़ी पैंग, घबराई काया,
चले गले, गहराई छाया,
पायल बजे, होश मुरझाये।

भूले छिन, मेरे न कटे दिन,
खुले कमल, मैंने तोड़े तिन,
अमलिन मुख की सभी सुहागिन,
मेरे सुख सीधे न समाये।