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कौन फिर तुझको बरेगा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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कौन फिर तुझको बरेगा
तू न जब उस पथ मरेगा?
निखिल के शर शत्रु हनकर,
क्षत भले कर क्षत्र बनकर,
तू चला जबतक न तनकर,--
धर्म का ध्वज कर न लेगा।
देश के अवशेष के रण
शमन के प्रहरण दिया तन
तो हुआ तू शरणशारण,
विश्व तेरे यश भरेगा।
मिलेंगे जन अशंकित मन
खिलेंगे निश्शेष-चेतन,
विषद-वासों के विभूषण,
चरण के तल, तू तरेगा।