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पुकार / नीरज दइया

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किसी शेर की तरह
दहाड़ता नहीं प्रेम
वह पुकारता है
मोर की तरह
मनुहार करता

वह पुकार ही सकता है
जैसे मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें
नज़रें चुरा के
तुम अपना चेहरा छिपाती हो
प्रेम का नाम आते ही
छुई-मुई-सी लजा जाती हो

यह प्रेम नहीं तो
बताओ ओर क्या है ?