भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चों सा / राजीव रंजन प्रसाद
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:01, 28 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>मैं अपने सब…)
मैं अपने सब्र की शरारत से हैरां हूँ
इतना बड़ा पत्थर कलेजे पर ढो लाया
और अब टूटे हुए कलेजे पर
टूटे हुए खिलौने सा रूठता है..
बच्चों-सा
७.१२.१९९५