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नया वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
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खिली सहास एक-एक पंखुरी,
झड़ी उदास एक-एक पंखुरी,
दिनांत प्रात, प्रात सांझ में घुला,
इसी तरह व्यतीत वर्ष हो गया।
गया हुआ समय फिरा नहीं कभी,
गिरा हुआ सुमन उठा नहीं कभी,
गई निशा दिवस कपाट को खुला,
गिरा सुमन नवीन बीज बो गया।
सजे नया कुसुम नवीन डाल में,
सजे नया दिवस नवीन साल में,
सजे सगर्व काल कंठ-भाल में
नवीन वर्ष को स्वरूप दो नया।