सहर्ष स्वर्ग घंटियाँ बजा रहा,
कलश सजा रहा, ध्वजा उठा रहा,
समस्त देवता उछाह में सजे,
तड़क रही कहीं गुलाम-हथकड़ी।
हटी न सिर्फ हिंद-भूमि-दासता,
मिला अधीन को नवीन रास्ता,
स्वतंत्र जब समग्र एशिया बने,
रही नहीं सुदूर वह सुघर घड़ी।
स्वतंत्र आज ब्रह्म देश भी हुआ,
ब्रिटेन का उतर गया कठिन जुआ,
उसे हज़ार बार हिंद की दुआ,
प्रसन्न आँख आँख देखकर बडी।