भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम से जाओ न बचाकर आँखें / अंजना संधीर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम से जाओ न बचाकर आँखें
यूँ गिराओ न उठाकर आँखें

ख़ामोशॊ दूर तलक फ़ैली है
बोलिए कुछ तो उठाकर आँखॆं

अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं
चैन से हैं उन्हें पाकर आँखॆं

मुझको जीने का सलीका आया
ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।