भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद धरती पे उतरता कब है / कविता किरण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता किरण |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> आईना रोज़ सँवरता …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईना रोज़ सँवरता कब है
अक्स पानी पे ठहरता कब है?

हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है?

न पड़े इश्क की नज़र जब तक
हुस्न का रंग निखरता कब है?

हो न मर्ज़ी अगर हवाओं की
रेत पर नाम उभरता कब है?

लाख चाहे ऐ 'किरण' दिल फ़िर भी
दर्द वादे से मुकरता कब है?