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चैन हासिल कहीं नहीं होता / कविता किरण
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चैन हासिल कहीं नहीं होता,
आपको क्यों यकीं नहीं होता।
नहीं होता ख़ुदा ख़ुदा जब तक,
आदमी आदमी नहीं होता।
आप हैं सामने हमारे और,
हमको फिर भी यकीं नहीं होता।
उम्र-भर साथ-साथ चलने से,
हमसफर हमनशीं नहीं होता।
नाप ले दूरियाँ भले आदम
आस्माँ ये ज़मीं नहीं होता।
जो न मिलती ‘किरण’ तेरी बाहें,
मौत का पल हसीं नहीं होता।