भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चल मुसाफ़िर बत्तियां जलने लगीं / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चल मुसाफ़िर बत्तियाँ जलने लगीं
आसमानी घंटियाँ बजने लगीं

दिन के सारे कपड़े ढीले हो गए
रात की सब चोलियाँ कसने लगीं

डूब जायेंगे सभी दरिया पहाड़
चांदनी की नद्दियाँ चढ़ने लगीं

जामुनों के बाग़ पर छाई घटा
ऊदी-ऊदी लड़कियाँ हँसने लगीं

रात की तन्हाइयों को सोचकर
चाय की दो प्यालियाँ हँसने लगीं

दौड़ते हैं फूल बस्तों को दबाए
पाँवों-पाँवों तितलियाँ चलने लगीं