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तसलीमा नसरीन / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
क्यों सुनी तुमने आत्मा की चीत्कार
तुम्हें छोड़ना नहीं पड़ता
रगों में बहता सुनहला देश
यहाँ कितने लोगों को आई लाज
अपनी ख़ामोशी पर
मुझे नहीं मिला कोई भी दोस्त
जिसने तुम्हारे आत्मघाती प्रेम पर
की हो कोई बात
मैं हूँ स्वयं भी जलावतन
और लज्जित भी
कि तुम्हारे लिए कर नहीं सका
मैं भी कुछ