Last modified on 31 अक्टूबर 2009, at 23:47

ललद्यद के नाम-2 / अग्निशेखर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारे पास तो भी कच्चा धागा है
जिससे तुम खींच रही हो समुद्र में नाव
मेरे पास कुछ भी तो नहीं है

गरमी के इस कहर में
नंगे तलुवों से मापते हुए अन्तहीन रेत
सूरज को रोकने की कोशिश है
माथे पर धरा मेरे बेख़ून हाथ

तुम पार तरने के लिए
कर रही हो अपने ईश्वर से मनुहार
मैं किसे पुकारूँ
मेरे देवी-देवता भी मेरे साथ हैं जलावतन

तुम्हें तो विश्वास है
कि उस पार है तुम्हारा घर
जिसके लिए तुम हो मेरी तरह बेचैन

पर मेरे घर का
शेष है
अस्थि-विसर्जन