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हाशिया / अचल वाजपेयी

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हाशिया छूट गया है

इन दिनों ढिठाई पर उतारू है
मैंने पहली बार देखा
हाशिया कोरा है, सपाट है
किन्तु बेहद झगड़ालू है

वह सार्थक रचनाएँ
कूड़े के भाव बेच देता है
कुशल गोताखोर सा
समुद्र में गहरे पैठता है
रस्सियाँ हिलाता है

मैं उसे खींचना चाहता हूँ
वह अतल से मोती ला रहा है
सबसे चमकदार मोती
मैं उसे तुम्हीं को सौंपना चाहता हूँ