पगध्वनियाँ जितनी भी,
जब भी सुनाई दीं
मेरे ही जूतों की
घिसट रही गतियाँ थीं ।
आकृतियाँ जैसी भी,
जो भी दिखायी दीं
दर्पण में मेरे ही
मुख की विकृतियाँ थी ।
कितु आह । स्मृतियाँ ॥
-वे केवल तुम्हारी ही
पगध्वनियाँ जितनी भी,
जब भी सुनाई दीं
मेरे ही जूतों की
घिसट रही गतियाँ थीं ।
आकृतियाँ जैसी भी,
जो भी दिखायी दीं
दर्पण में मेरे ही
मुख की विकृतियाँ थी ।
कितु आह । स्मृतियाँ ॥
-वे केवल तुम्हारी ही