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रिश्ते / मनीष मिश्र

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रिश्ते अपने अतीत में सुगबुगाते हैं
वे खरोंचते है एक-दूसरे केा अपने पंजो से
अपनी ऊनी देह के बावजूद
वे जुटा नहीं पाते उष्मा
उधड़ती जाती उनकी सीवन

रिश्ते करते है प्रार्थना
बर्दाश्त की हद तक ।

उम्र की ढलान पर
रिश्ते फड़फड़ाते हैं टूटे हुये पंखो से ।

वे उड़ना चाहते हैं फिर से
एक नये आकाश में ।