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तुम जब घर आओगी / मनीष मिश्र

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तुम जब घर आओगी
 
तो साथ लाओगी
वर्षों की कुँवारी सुगन्ध
नारीत्व का मुलायम झीना एहसास
और लरजता, ठिठकता मौन ।

तुम जब घर आओगी
हम संग ढकेंगे
आकाश को पक्षिंयो से
धरती को वनस्पतियों से
और चुप को शब्दो से ।

तुम जब घर आओगी
हम संग सुनेंगे
अल सुबह किसी चिड़िया की चहक
कीड़ो की प्रणय पुकार
और विलंबित ताल में गुंथा प्रेम राग

जब तुम घर आओगी ।