भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सु-अवसर/ सियाराम शरण गुप्त

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:16, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>विगत हे जल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विगत हे जलजात! निशा हुई,
द्युतिमयी वह पूर्व दिशा हुई।
छिप उलूक गये भय भीति से
अब विकास करो तुम प्रीति से।