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सु-अवसर/ सियाराम शरण गुप्त
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विगत हे जलजात! निशा हुई,
द्युतिमयी वह पूर्व दिशा हुई।
छिप उलूक गये भय भीति से
अब विकास करो तुम प्रीति से।