Last modified on 3 नवम्बर 2009, at 20:43

हरि हरि हरि हरि सुमिरन करो / भजन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKBhajan |रचनाकार= }} <poem>हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो, हरि चरणारविन्द …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो,
हरि चरणारविन्द उर धरो ..

हरि की कथा होये जब जहाँ,
गंगा हू चलि आवे तहाँ ..
हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ...

यमुना सिंधु सरस्वती आवे,
गोदावरी विलम्ब न लावे .

सर्व तीर्थ को वासा तहाँ,
सूर हरि कथा होवे जहाँ ..
हरि हरि, हरि हरि, सुमिरन करो ...