Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 20:46

मैं राह बना रहा हूँ / अनामिका

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

संभव है, मैं एक राह बना रहा होऊँ एक ठोस चट्टान में—
चक़मक़ परतों में, जैसे कि पड़ा हो अयस्क अकेले—
इतना भीतर चला आया हूँ कि मुझको रास्ता दिखाई नहीं देता
और मिलता नहीं कोई विस्तार: सब मेरे चेहरे के नज़दीक है—
और जो कुछ भी है मेरे चेहरे के नज़दीक—पत्थर है केवल।

तकलीफ़ में अब तक ज्ञान-वान कुछ नहीं मिला—
यह भीमाकार-सा अंधेरा
छोटा करता है मुझे।
मेरे स्वामी बन लो, बनो तुम भयानक और भीतर बैठो।

तब तुम्हारा बड़ा बदलाव मुझमें घटित होगा
और मेरी भीषण शोकातुर चीख़
होगी घटित तुममें।