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कबाड़ / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
उन्होंने बहुत सी चीज़ें बनाईं
और उनका उपयोग सिखाया
उन्होंने बहुत सी और चीज़ें बनाईं दिलफरेब
और उनका उपभोग सिखाया
उन्होंने हमारा तन मन धन ढाला अपने सांचों में
और हमने लुटाया सर्वस्व
जो हमारे घरों में और समाया हमारे भीतर
जाने किस कूबत से हमने
उसे कबाड़ की तरह फेंकना सीखा
कबाड़ी उसे बेच आए मेहनताना लेकर
उन्होंने उसे फिर फिर दिया नया रूप रंग गंध और स्वाद
हमने फिर फिर लुटाया सर्वस्व
और फिर फिर फेंका कबाड़
इस कारोबार ने दुनिया को फाड़ा भीतर से फांक फांक
बाहर से सिल दिया गेंद की तरह
ठसाठस कबाड़ भरा विस्फोटक है
अंतरिक्ष में लटका हुआ पृथ्वी का नीला संतरा •
(1997)