Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 23:04

सच के पास आदमी नहीं है / अभिज्ञात

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सच का भूत
घूम रहा है दरबदर
ढूंढ़ता हुआ एक आदमी
उसे आदमी नहीं मिलते
वह जिसके साथ रह सके।
चारों तरफ भरा पड़ा है सच।
हज़ार-हज़ार आँखों से देखा जा सकता है।
क्षण-क्षण महसूस किया जा सकता है
मगर उसके पीछे आदमी नहीं है
इसलिए सच-सच नहीं है।

आदमी
सच से भयभीत
बुदबुदाता है कहीं नहीं है सच।
सच का अभाव है
सच का नहीं है अस्तित्व।
आदमी के पास सच नहीं है
और
सच के पास
आदमी नहीं है।