भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रधान और पुल / अरुण कमल
Kavita Kosh से
अपने प्रधान को नए बने पुल का
उद्घाटन करना था और जैसी प्रथा थी
पुल पर सबसे पहले उन्हीं को चलना था
प्रधान ने एक बार रस्ते को ताका
कुछ सोचा
कुछ भाँपा
और कहा-- भाइयो! लोगो! समझो उद्घाटन हो गया
और लौट गए
बात यह थी कि प्रधान को पुल पर भरोसा न था