भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जेल का गिलास / अरुण कमल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:38, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझको जो गिलास मिला है
अल्मुनियम का पिचका गन्दा गिलास
उस पर एक नाम खुदा है-- रामरतन
सफ़ाई मज़दूर संथाल परगना

आज जिस गिलास में मैं पानी पी रहा हूँ
उसी में पिया था पानी इस मज़दूर ने
दफ़ादार चौकीदार ने
बिजली मज़दूर स्कूल शिक्षक छात्र नौजवानों ने

एक ही नदी से पिया है जल सब ने
एक ही रास्ते चले सारे पाँव
जिसने भी रक्खा इस रास्ते पर पाँव
सागर से जा मिला