भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ / अली सरदार जाफ़री

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ
मेरी नज़रों से गुज़र कर दिल-ओ-जाँ तक आओ

फिर ये देखो कि ज़माने की हवा है कैसी
साथ मेरे मेरे फ़िर्दौस-ए-जवाँ तक आओ

तेग़ की तरह चलो छोड़ के आग़ोश-ए-नियाम
तीर की तरह से आग़ोश-ए-कमाँ तक आओ

फूल के गिर्द फिरो बाग़ में मानिन्द-ए-नसीम
मिस्ल-ए-परवाना किसी शम-ए-तपाँ तक आओ

लो वो सदियों के जहन्नुम की हदें ख़त्म हुई
अब है फ़िर्दौस ही फ़िर्दौस जहाँ तक आओ

छोड़ कर वहम-ओ-गुमाँ हुस्न-ए-यकीं तक पहुँचो
पर यक़ीं से भी कभी वहम-ओ-गुमाँ तक आओ